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समाज में एकरुपता

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समाज में एकरुपता

समाज में एकरुपता: समाज की वास्तविक शक्ति समाज के सदस्यों में निहित होती है. सामाजिक जीवन में समाज के सदस्यों का आशावादी, सकारात्मक दृष्टिकोण, सकारात्मक सोच का होना का अत्याधिक महत्वपूर्ण होता है. समाज के सदस्यों की सकारात्मक सोच, दृष्टिकोण के कारण ही समाज में एकरुपता व उत्तरदायित्व आकर, समाज की समाज की उन्नति प्रगति संभव होती है. यदि समाज के कुछ सदस्यों की नकारात्मक सोच, दृष्टिकोण होता है तो नकारात्मक सोच, दृष्टिकोण वाले सदस्यों की संकिण मानसिकता के कारण, समाज के योग्य, समाज हित में कार्य करने वाले सदस्यों का मनोबल गिराकर, उन्हें हतोत्साहित कर, उनकी आलोचना कर, समाज के विकास में वाधक बनते रेहते है. 

स्वच्छ समीक्षा की जाना आवश्यक

यदि समाज में एक रुपता, समाज के प्रति समर्पण भावना, त्याग भावना, सहयोग भावना, होकर, आशावादी दृष्टिकोण हो तो समाज की उन्नति को कोई रोक नहीं सकता है. समाज सदस्यों के सकारात्मक दृष्टिकोण के परिणाम स्वरूप ही सामाजिक संगठन समाज के हित में अतिशीघ्र निर्माण लेकर, समाज के अधिकांश सदस्यों का हित साधते हुए, समाज का भला व हित कर सकते हैं.लेकिन यदि समाज के कुछ सदस्यों के नकारात्मक सोच, दृष्टिकोण होने के कारण, ऐसे सदस्य, समाज हित में कार्य करने वाले सदस्यों की आलोचना करते हुए, समाज के प्रत्येक कार्य में रोड़ा अटका कर, वाधा डालकर, समाज को अधोगति, पतन की ओर अग्रसर करते हुए, पाये जाते हैं. 

समाज में समाज के लिए किये जाने वाले कार्यों की स्वच्छ समीक्षा की जाना आवश्यक होता है. ऐसी स्थिति में यदि किसी सदस्य की कोई आपत्ति, विरोध होता है तो ऐसी स्थिति में समाज के अन्य सदस्यों द्वारा, उन आपत्तियों विरोध के कारणों का विश्लेषण अवश्य किया जाकर वास्तविक सही निर्णय लिया जाना, एक सामान्य प्रक़िया होती है. लेकिन व्यक्तिगत कारणों से सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना, एक विकृत, कुठित मानसिकता होती है. समाज के सदस्यों की सोच, आपसी सहयोग, मधुर संबंधों के कारण समाज के ही भौतिक साधनों का समुचित उपयोग कर, समाज की सफलता, सम्पन्नता संभव होती है. 

समाज में सकारात्मक सोच के परिणाम स्वरूप ही सम्मान सहयोग की भावना विकसित होकर, एक दूसरे के दुख सुख में, किसी परेशानी के समय, में आपसी सहयोग किया जाना संभव हो सकता है. आपसी सहयोग से समाज के सदस्यों की कार्य कुशलता, आर्थिक सक्षमता, समाज की प्रगति में सहयोगी होतें हुए, एक सभ्य, शिष्ट, संतुलित समाज की संरचना संभव होती है.

समाज में एकरुपता का सामाजिक उत्तरदायित्व

समाज में समाज की प्रगति के लिए समाज पत्यैक सदस्य का सामूहिक उत्तरदायित्व होता है. समाज के प्रत्येक सदस्य का कर्तव्य होता है कि वह अपनी योग्यता, हैसियत, आर्थिक क्षमतानुसार समाज के लिए सहयोग करे. समाज के सदस्यों के सहयोग, योगदान से ही समाज का विकास संभव होता है. समाज के आर्थिक रूप से कमजोर, सदस्यों, या सिमित आर्थिक क्षमता वाले सदस्यों की तुलना में आर्थिक रूप से सक्षम सदस्यों द्वारा अधिक आर्थिक सहयोग से सामाजिक असमानता की कमी की पूर्ति होकर, समाज के प्रत्येक सदस्य के साथ समाज का विकास हो सकता है. इसके लिए आवश्यक होता है कि प्रत्येक सदस्य का समाज के प्रति लगाव, जुड़ाव, व समर्पण होना भी आवश्यक होता है. 

सामर्थ्यवान सदस्यों का नैतिक उतर दायित्व 

समाज के आर्थिक रूप से सक्षम, समर्थ सदस्यों का नैतिक उतर दायित्व होता है कि सामाजिक रूप से, असक्षम सदस्यों की सहायता के लिए एक कोष का निर्माण कर, कोष के माध्यम से, आर्थिक रूप से असक्षम सदस्यों की सहायता कर, उनकों सक्षम बनाकर समाज की मुख्य धारा में जोड़े रखें. इसी कोष के उपयोग से, समाज के गरीब परिवारों के बच्चों के उच्च शिक्षा, रोजगार, एवं गरीब परिवारों की कन्याओं के विवाह के लिए, सहयोग व सहायता किया जाना चाहिए. हमारे हैहय बंशी क्षत्रिय समाज के अधिकांश सदस्य गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार की श्रेणी में आते है.

अतः ऐसी स्थिति में समाज के उच्च, आर्थिक रूप सक्षम समर्थ सदस्यों का उतर दायित्व है कि अपने सामर्थ अनुसार, ऐसे परिवारों को सहयोग प्रदान करें. ताकि गरीब, मध्यम वर्गीय परिवार भी समर्थ होकर, विकास कर, श्रैष्ठ जीवन यापन कर सकें. और सम्पूर्ण समाज विकसित होकर, सक्षम होकर, उन्नति, प्रगति व विकसित होकर सामर्थ्य बान सकें. 

अनेक विकसित समाजों द्वारा धार्मिक, शैक्षणिक, स्वस्थ के लिए मंदिर, विधालय, चिकित्सालय आदि कईं तरहा के सामाजिक कल्याण कारी कार्य किये जाते हैं जो मानव कल्याण के उद्देश्य से सभी समाजों के लिए होतें है. लेकिन हमारा हैहय बंशी क्षत्रिय समाज उन समाजों की तुलना में आर्थिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़ा हुआ समाज है. अतः हमारे समाज के सक्षम सदस्य परिवार अन्य व्यक्तियों के लिए ना सही, कम से कम अपने ही समाज के सदस्यों के उत्थान के लिए तो अनिवार्य रूप से ऐसा कार्य कर ही सकते हैं. 

यदि समाज के आर्थिक रूप से सक्षम सदस्य परिवार, समाज सेवा, सहायता, सहयोग करते हैं तो ऐसे सदस्यों परिवारों की समाज में प्रतिष्ठा, सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. ऐसे ही सदस्य परिवार समाज को नैतृत्व प्रदान कर, मार्ग दर्शन करते हुए, प्रतिष्ठा व सम्मान पा कर गौरान्वित होतें है.

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